बुधवार, 26 दिसंबर 2012

ये कैसा जनादेश है


चीख है
पुकार है 
चारों ओर हाहाकार है
लड़कियाँ लाचार है
समाज खूंखार है
बोटियाँ तैयार है
नोचनेवाला होशियार है
सारी दुनिया शर्मसार है
क्या
सिर्फ और सिर्फ
लड़कियाँ जिम्मेदार है...?
ये कैसा जनादेश है
चारों ओर आवेश है
संसद से सड़क तक
भीड़ आज व्यस्त है
लड़कियाँ अभिशप्त है
आसमां रो रहा
धरती चीख रही
ये कैसा जनादेश है
कैसा जनादेश है 
कैसा जनादेश है..
कैसा जनादेश है...........

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

मैंने कल चाँद देखा


मैंने कल चाँद देखा
मैंने कल पानी में चाँद देखा
बिल्कुल शांत स्थिर चाँद को
पानी में हिलते  
हिचकोले खाते देखा
फिर
सर उठाया तो
मुझे हर तरफ
चाँद ही चाँद नजर आया
ना जाने
कितने ही चाँद
हमारे यहाँ
पानी में हिचकोले खा रहे होंगे
सुना है
पानी धो डालता है
सब कुछ
बहा डालता है
कुछ भी
लेकिन चाँद को धो नहीं पाया
बहा नहीं पाया
चाँद के अस्तित्व को
मैं क्या समझूँ
चाँद अपना दाग धोने को आतुर है या
पानी अपना कर्तव्य
निर्वहन नहीं कर रही
मैं किससे पूछूँ
पानी से या फिर
पानी में हिलते चाँद से.......