शनिवार, 5 दिसंबर 2015

चलो एक बार फिर

आज फिर
गंगा निढाल हो पड़ी है
चलो एक बार फिर
रौंद आएं उसे

चलो एक बार फिर
अपने साफ सुथरे तन को
धो आएं गंगा में
उस गंगा में
जिसके किनारे अभी अभी
एक जिन्दा लाश जलायी गई है
मल मूत्र
थूक खखार
बहायी गयी है

चलो अपने मन को
थोड़ा साफ कर आएं
निर्मल कर आएं
और
गंगा को थोडा़ और
दुषित कर आएं
और जाते जाते अंत में
गंगा मइया की जय
बोल आएं,,,,, 

1 टिप्पणी:

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