बुधवार, 2 मार्च 2016

मेरी नौ कविताएं (फरवरी )

जनहित में जारी
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सोशल साइट्स पर
शेखी बघारते कलमचियों
होश में आओ
बंद करो उलूल जलूल लिखना
विराम दो
अपनी लेखनी को
वर्ना हत्या और आत्महत्या में
उलझ कर रह जाएगी पुलिस
फिर लिखते रहना
कहलाते रहना सहिष्णु
और सच्चा देश भक्त
बात तुम्हें समझ में नहीं आती
कितने साथियों को तो लील लिया हमने
क्या तुम भी जाना चाहते हो
उनके पास
तुम देख ही रहे हो
मौत पर दो चार दिन हाय तौबा के बाद
बात कैसे आयी गई जैसी हो जाती है
समय नहीं है किसी के पास
जो तुम जैसों की
मौत पर भी उमड़ पड़े जन सैलाब
पसीने छुड़ा दे हम जैसों के
सरकार हो जाए अस्थिर
बंद करो
किताबी मुहावरों पर रौब झाड़ना
कलम बड़ी या तलवार
तुम्हारी कलम से तुम्हारा ही सर कलम कर दिया
हाथ तो कानून के सचमुच लंबे होते हैं
लेकिन
तुम जैसों के लिए नहीं
सिर्फ हमारे लिए,,,,,
                            ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ( 1 फरवरी )

जय जवान
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सियाचिन के हिमस्खलन में
दस जानें कहां गई
माटी के सपूत थे
माटी में मिल गए

इनकी प्रतिबद्घता को देख
हिमालय हिल
बर्फ हो गए
माटी के सपूत थे
माटी में मिल गए

नमन तुम्हें ऐ सपूतों
तुम मर कर भी
अमर हो गए
माटी के सपूत थे
माटी में मिल गए,,,,,,,,
                                 ,,,,,,,,,,  ( 4 फरवरी )

झुरमुट
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याद है तुझे
वो मुहब्बत वाला पल
उस पल सिर्फ
मुहब्बत हुआ करती थी
क्या कहा
अब हमारा साथ नहीं रहा
तो क्या हुआ
आज तू नही है तो
वो झुरमुट भी कहां रहा
कब का काटा जा चुका है
और बन पड़ा है वहां
एक भव्य सा इमारत
जो शान से खड़ा है अपना वजूद लिए
हमारे वजूद को मिटा कर
लेकिन तुम चिंतित मत होना
और भी झुरमुट उग आए हैं
उस इमारत के इर्द गिर्द
जो कह रहे हैं
हमारा वजूद कभी खत्म नहीं होने देगा
तुम्हें तो खुश होना चाहिए
झुरमुट की साहस पर
उसकी आत्मीयता पर,,,
                                    ,,,,,,,,, ( 6 फरवरी )
 
इसे भारत रहने दो
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कुछ सोच
जो निरंतर संकुचित होती जा रही है
कुछ घर
जो अब भी
फूंके जा रहे हैं
कुछ धर्म
जिनमें अब भी मतभेद हैं
समानता नहीं है
ढोए जा रहे हैं
जहां हर पल कुछ दृश्य
उभर रहे हैं
एकजुटता के गीत गाए जा रहे हैं
लहुलुहान जनादेश
अपनी पगड़ी संभाले
कहीं और भागे जा रहे हैं
भरे बाजार इज्जत लूटी जा रही है
अपनों को तो आदत है
मेहमान भी सर झुकाए जा रहे हैं
मैं किस किस को समझाऊं
ये भारत है भाईयों
इसे भारत ही रहने दो
भारत ही रहने दो,,,,          
                                ,,,,,,,,,,,,,,( 7 फरवरी )


जाइए जाकर पूछिए
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दिल पर पत्थर रखना
क्या होता है
जाइए जाकर पूछिए
छाती पीटती उस मां से
जिसका जवान बेटा
अभी अभी मरा है
मेरे और आपके मुठभेड़ में
जाइए जाकर पूछिए
उस किसान के परिवार वालों से
जिसने अभी अभी आत्महत्या कर ली है
जिनकी फसलों को आग लगा दिया है
उन आततायियों ने
जाइए जाकर पूछिए
उस विधवा से
जिसका पति अभी अभी शहीद हुआ है
किसी मिशन पर
आतंकियों के गोली से
जाइए जाकर पूछिए
उस मां से जिसने अपने बच्चों को
सिर्फ पानी पिलाकर सुलाया है
कल भोजन मिलेगा की सांत्वना देकर
जाइए जाकर पूछिए
ट्रैफिक पर भीख मांगते भिखारी से
जिसे भीख के बदले मिलती है रोज
कुछ नयी गालियां
जाइए जाकर पूछिए
स्टेशन के बाहर बैठा उस अपाहिज से
जिसके सर से अभी अभी उठ गया है
मां बाप का साया
और थमा दिया है उसे
हम में से किसी ने हाथ में कटोरा
और आप हैं कि
बात करते हैं
दिल पर पत्थर रखने की
पत्थर का भी अपना वजूद है
हर समय पत्थर नहीं रख सकते दिल पर,,,
                                ,,,,,,,,,,,,,,,,( 8 फरवरी )

आजकल
कांटे कहां चुभते है
बातें चुभ जाती हैं
प्रेम में
और लहूलुहान हो उठता है
एहसास
विश्वास गहरा होने के बजाए
पीप से भर उठता है
और
ताजा हो जाता है घाव,,,,
                                ,,,,,,, ( 15 फरवरी )

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अपने देश का हाल देखिए
अपने शहर का समाज देखिए

जिनके मुंह में ज़ुबान न थी
उनकी अब आवाज देखिए

चोंगा बदल बैठा है सरताज़
बीता हुआ कल और आज देखिए

रोटी पे नमक न थी कल तक
नमक खाए नमकहराम देखिए

ख़ून से बदबू आती है जिनकी
काले कोट  वाले देशभक्त देखिए

बिखरा पड़ा है साजो सामान
कश्मीर के भूखे सियार देखिए,,,,,                  
                                          ( 18 फरवरी )

देशद्रोह
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देशद्रोह क्या होता है
मुझे नहीं पता
मुझे यह भी नहीं पता कि क्या बोलने
पर देशद्रोह का मुकदमा चल जाए हम पर
इसलिए चुपचाप सब सुनता हूं
और चुपचाप पूछता हूं सबसे
ये देशद्रोह क्या होता है

राष्ट्रवाद की तो पूछिए मत
राष्ट्र में ट के नीचे लटका
दो तिरछे लकीर जैसा हूं मैं
फिर इसकी परिभाषा मुझे कैसे मालूम होगी

असल देशभक्त और राष्ट्रवादी तो वो हैं जो
बात बे बात
तेरे मां की
तेरे बहन की करते हैं
मैं जान गया हूं अब
किसी भीड़ को अगर संबोधित करूं
तो मुंह पर पट्टी बांध लूं
कहीं औरत लुटता देखूं
तो नजरें घुमा लूं
कहीं खून होते देखूं
तो कहूं
मैने कुछ नहीं देखा
मैं वहां नहीं था

क्या कहा ?
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या होगा

अगर वास्तव में कुछ होता
तो रोहित जिंदा और
कन्हैया बाहर होता,,,,,,,,,,,,,,,,,,
                                       ( 20 फरवरी )

आप ट्वीटर पर रहें
या जूपिटर पर आपका
हर संभव प्रयास होता है
दूसरे को नीचा दिखाने का
लेकिन
आप उसे कैसे नीचा दिखाएंगे
जो दिनभर अथक मेहनत के बाद
शाम में कहता है
मालिक आज थोड़ा जल्दी जाना है
मेरा छोटका बचवा बीमार है
और आप कहते हैं
अभी टाईम नहीं हुआ है
तू कामचोर कब से हो गया रे,,,,
                                      ,,,,,,,( 28 फरवरी )
© पंकज कुमार साह